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मिलेट्स -Millets

मोटा अनाज हो सकता है आपके पशुओं के लिए घातक

मोटा अनाज हो सकता है आपके पशुओं के लिए घातक

हम सभी जानते हैं, कि यह साल विश्व में इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स (आईवायओएम/IYoM) के रूप में मनाया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में केंद्र सरकार सभी तरह के मोटे अनाज के उत्पादन और उसकी खपत के लिए जनता को प्रोत्साहित कर रही है। एक्सपर्ट्स का मानना है, कि मोटे अनाज का सेवन करना आपके लिए स्वास्थ्यवर्धक होता है। यह न सिर्फ आपको स्वास्थ्य को अच्छा बनाकर रखता है, बल्कि यह हमारी प्रतिरक्षा (Immunity) बढ़ाने के लिए भी बेहद जरूरी है। अगर आप नियमित रूप से मोटे अनाज का सेवन करते हैं, तो यह आपके प्रतिरक्षा प्रणाली (Immune system) को स्ट्रांग करता है। आपको बहुत तरह के रोगों से दूर रखता है। मोटा अनाज इंसानों के अलावा पशुओं के लिए भी काफी लाभकारी माना गया है। लेकिन हमें यह भी जानने की जरूरत है, कि मोटा अनाज कभी-कभी पशुओं के लिए नुकसानदायक भी हो सकता है और आज हम इसी के बारे में बात करेंगे। 

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पशुओं को किस तरह से खिलाया जाए बाजरा

अगर आप अपने पशुओं के आहार में बाजरे को मिलाना चाहते हैं, तो आप इसका दलिया बनाकर उसे अच्छी तरह से पका कर तैयार कर सकते हैं। उसके बाद आप इसे अपने पशुओं को खिला सकते हैं। साथ ही, आप पशुओं के चारे में बाजरे का आटा मिलाकर भी उन्हें खिला सकते हैं। आपको यह जानकर हैरानी होगी लेकिन पशुओं को भी थोड़े बहुत नमक की जरूरत होती है। इसलिए अगर जरूरत पड़े तो आप इस आटे में चुटकी भर नमक भी मिलाकर पशुओं को दे सकते हैं। रोजाना बात की जाए तो आप 1 से 2 किलो बाजरा अपने पशुओं को खिला सकते हैं। बाजरे का आटा खिलाने का सबसे बड़ा फायदा यह है, कि यह आपके पशुओं को वजन बढ़ाने में मदद करता है। 

पशुओं को बाजरा खिलाने के क्या है फायदे

पशुओं को बहुत पहले से बाजरा या फिर बाजरे का आटा खिलाया जाता रहा है। अगर आप के पशु को लिवर से जुड़ी हुई किसी तरह की समस्या है, तो आप उसे बेझिझक बाजरा खिला सकते हैं यह उसके लिए काफी लाभदायक होगा। बाजरा पशुओं के पाचन तंत्र को मजबूत करता है। बहुत से मामलों में ऐसा होता है, कि बच्चा पैदा करने के बाद पशु बीमार रहने लगता है। ऐसे मामले में आप उसे बाजरा खिला सकते हैं। यह न सिर्फ उसे बीमारियों से दूर रखेगा बल्कि यह पशुओं में दुग्ध उत्पादन बढ़ाने में भी बहुत ज्यादा सहायक है। आप छोटे पशुओं जैसे कि बछड़े आदि को भी बाजरे के आटे की छोटी-छोटी लोई बनाकर खिला सकते हैं। यह उनके स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभकारी है। 

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बाजरा खिलाने से कुछ नुकसान भी हो सकते हैं

हमने मोटे अनाज जैसे कि बाजरे आदि का पशुओं के आहार में फायदा तो देख लिया है। लेकिन कई बार इसके बहुत से नुकसान भी देखे जाते हैं। अगर आप लंबे समय तक अपने पशुओं को बाजरे का आटा या फिर बाजरे का दलिया खिलाते रहते हैं। तो उन में आयरन की कमी हो सकती है। इससे पशु की बॉडी पर गांठें उभरने लगती हैं। इसके अलावा अगर आप जरूरत से ज्यादा बाजरा पशुओं को खिला रहे हैं, तो उनमें अफारे की समस्या देखने को मिल सकती है। पशु चिकित्सक और एक्सपर्ट का कहना है, कि कभी भी किसी जानवर को बिना डॉक्टर की सलाह के बाजरा नहीं खिलाया जाना चाहिए। अगर आप इसे खिला भी रहे हैं, तो इसकी मात्रा हमेशा सीमित रखें।

बाजरा एक जादुई फसल है, जो इम्युनिटी पावर को बढ़ाती है

बाजरा एक जादुई फसल है, जो इम्युनिटी पावर को बढ़ाती है

बाजरा प्रोटीन, फाइबर, प्रमुख विटामिन और खनिजों का एक अच्छा स्रोत है। बाजरा हृदय स्वास्थ्य की रक्षा करने में मदद करता है, मधुमेह की शुरुआत को रोकता है

महाराष्ट्र के कुछ आंतरिक भागों में, कम वर्षा फसलों की वृद्धि पर नकारात्मक प्रभाव डालती है।

एक केस स्टडी के अनुसार, महाराष्ट्र के मराठवाड़ा मंडल के 27 वर्षीय किसान अंकित शर्मा को कम वर्षा पैटर्न के कारण प्रति वर्ष 5 लाख का नुकसान हुआ। चूँकि भारत में वर्षा का पैटर्न कई कारकों पर निर्भर करता है। जैसे; एल नीनो । ला लीना, उच्च दबाव (hp) और कम दबाव (lp), हिंद महासागर द्विध्रुवीय आंदोलन। वर्षा की समस्या को हल करने के लिए भारत सरकार और कई राज्य सरकारों ने प्रधान मंत्री कृषि सिंचाई योजना जैसी सिंचाई योजनाओं की शुरुआत की, जिससे इस जटिल समस्या का कुछ हद तक समाधान हुआ है, लेकिन यह लंबे समय तक संभव नहीं है।

समाधान बाजरे की खेती है, जो भारत की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुकूल है।

2023 में अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष 2018 में खाद्य और कृषि संगठन (FAO) द्वारा अनुमोदित किया गया था और संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2023 को बाजरा का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष घोषित किया है। ओडिशा सरकार ने ओडिशा मिलेट मिशन (OMM) लॉन्च किया था। जिसका उद्देश्य किसानों को उन फसलों को उगाने के लिए प्रोत्साहित करके अपने खेतों और खाद्य प्लेटों में बाजरा वापस लाना है। जो पारंपरिक रूप से आदिवासी क्षेत्रों में आहार और फसल प्रणाली का एक बड़ा हिस्सा हैं।

यदि हम बाजरे के महत्व पर विचार करें तो यह एक लंबी सूची है।

पोषण से भरपूर:

बाजरा प्रोटीन, फाइबर, प्रमुख विटामिन और खनिजों का एक अच्छा स्रोत है। बाजरा हृदय स्वास्थ्य की रक्षा करने में मदद करता है, मधुमेह की शुरुआत को रोकता है, लोगों को स्वस्थ वजन हासिल करने और बनाए रखने में मदद करता है, और आंत में सूजन का प्रबंधन करता है।

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कम पानी की आवश्यकता होती है:

बाजरा अर्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय में एक महत्वपूर्ण प्रधान है। जरूरतमंद व्यक्तियों के लिए भोजन और पोषण सुरक्षा की गारंटी देता है, जो कम वर्षा और मिट्टी की उर्वरता के कारण अन्य खाद्य फसलें नहीं उगा सकते हैं।

मध्यम उपजाऊ मिट्टी की आवश्यकता होती है:

वे कम से मध्यम उपजाऊ मिट्टी और कम वर्षा वाले क्षेत्रों में बढ़ सकते हैं। ज्वार, बाजरा और रागी भारत में विकसित प्रमुख बाजरा हैं।

लाभदायक फसल:

बाजरा किसानों के लिए खेती के प्राथमिक लक्ष्यों जैसे लाभ, बहुमुखी प्रतिभा और प्रबंधनीयता को प्राप्त करने के लिए अच्छा विकल्प है।

सूखा प्रतिरोधी और टिकाऊ:

बाजरा भविष्य का 'अद्भुत अनाज' है। क्योंकि वे सूखा प्रतिरोधी है, जिन्हें कुछ बाहरी आदानों की आवश्यकता होती है। कठोर परिस्थितियों के खिलाफ अपने उच्च प्रतिरोध के कारण, मोटे अनाज पर्यावरण के लिए, इसे उगाने वाले किसानों के लिए टिकाऊ होते हैं। सभी के लिए सस्ते और उच्च पोषक विकल्प प्रदान करते हैं।

लंबी शेल्फ लाइफ:

भारत में उत्पादित लगभग 40 प्रतिशत भोजन हर साल बर्बाद हो जाता है। बाजरा आसानी से नष्ट नहीं होता है, और कुछ बाजरा 10-12 साल बढ़ने के बाद भी खाने के लिए अच्छे होते हैं, इस प्रकार खाद्य सुरक्षा प्रदान करते हैं, और भोजन की बर्बादी को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। चूँकि सरकार बाजरा उगाने के लिए प्रचार कर रही है, इसलिए सरकार द्वारा विभिन्न योजनाएँ शुरू की गई हैं। उचित प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण की पहल के साथ समर्पित कार्यक्रम जो किसानों को घाटे वाली फसलों से दूर बाजरा के माध्यम से विविधीकरण की ओर ले जाने का आग्रह करते हैं, किसानों को दूर करने का एक समयोचित तरीका हो सकता है।

भारत सरकार ने मोटे अनाजों को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किये तीन नए उत्कृष्टता केंद्र

भारत सरकार ने मोटे अनाजों को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किये तीन नए उत्कृष्टता केंद्र

भारत दुनिया में मोटे अनाजों (Coarse Grains) का सबसे बड़ा उत्पादक देश है, इसलिए भारत इस चीज के लिए तेजी से प्रयासरत है कि दुनिया भर में मोटे अनाजों की स्वीकार्यता बढ़े। 

इसको लेकर भारत ने साल 2018 को मिलेट्स ईयर के तौर पर मनाया था और साथ ही अब साल 2023 को संयुक्त राष्ट्र संघ इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स (आईवायओएम/IYoM-2023) के तौर पर मनाएगा। इसका सुझाव भी संयुक्त राष्ट्र (United Nations) संघ को भारत सरकार ने ही दिया है, जिस पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने सहमति जताई है।

इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स (IYoM) 2023 योजना का सरकारी दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, देश के भीतर मोटे अनाजों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भारत सरकार ने देश में तीन नए उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किये हैं, जो देश में मोटे अनाजों के उत्पादन को बढ़ाने में सहायक होंगे, साथ ही ये उत्कृष्टता केंद्र देश में मोटे अनाजों के प्रति लोगों को जागरूक भी करेंगे।

  • इन तीन उत्कृष्टता केंद्रों में से पहला केंद्र बाजरा (Pearl Millet) के लिए  चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार (Chaudhary Charan Singh Haryana Agricultural University, Hisar) में स्थापित किया गया है। यह केंद्र पूरी तरह से बाजरे की खेती के लिए, उसके उत्पादन के लिए तथा उसके प्रचार प्रसार के लिए बनाया गया है, इसके साथ ही यह केंद्र लोगों के बीच बाजरे के फायदों को लेकर जागरूक करने का प्रयास भी करेगा।
  • इसी कड़ी में सरकार ने दूसरा उत्कृष्टता केंद्र भारतीय कदन्न अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद (Indian Institute of Millets Research (IIMR)) में स्थापित किया है। यह केंद्र ज्वार (Jowar) की खेती को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया है। यह केंद्र देश भर में ज्वार की खेती के प्रति लोगों को जागरूक करेगा, साथ ही लोगों के बीच ज्वार से होने वाले फायदों को लेकर जागरूकता फैलाएगा।
  • इनके साथ ही तीसरा उत्कृष्टता केंद्र कृषि विज्ञान विश्विद्यालय, बेंगलुरु (University of Agricultural Sciences, GKVK, Bangalore) में स्थापित किया गया है। यह उत्कृष्टता केंद्र छोटे मिलेट्स जैसे कोदो, फॉक्सटेल, प्रोसो और बार्नयार्ड इत्यादि के उत्पादन और प्रचार प्रसार के लिए बनाया गया है।
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मोटे अनाजों में मुख्य तौर पर ज्वार, बाजरा, मक्का, जौ, फिंगर बाजरा और अन्य कुटकी जैसे कोदो, फॉक्सटेल, प्रोसो और बार्नयार्ड इत्यादि आते हैं, इन सभी को मिलाकर भारत में मोटा अनाज या मिलेट्स (Millets) कहते हैं। 

इन अनाजों को ज्यादातर पोषक अनाज भी कहा जाता है क्योंकि इन अनाजों में चावल और गेहूं की तुलना में 3.5 गुना अधिक पोषक तत्व पाए जाते हैं। मोटे अनाजों में पोषक तत्वों का भंडार होता है, जो स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहद फायदेमंद होते हैं। 

मिलेटस में मुख्य तौर पर बीटा-कैरोटीन, नाइयासिन, विटामिन-बी6, फोलिक एसिड, पोटेशियम, मैग्नीशियम, जस्ता आदि खनिजों के साथ विटामिन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। 

इन अनाजों का सेवन लोगों के लिए बेहद फायदेमंद होता है, इनका सेवन करने वाले लोगों को कब्ज और अपच की परेशानी होने की संभावना न के बराबर होती है। 

ये अनाज बेहद चमत्कारिक हैं क्योंकि ये अनाज विपरीत परिस्तिथियों में भी आसानी से उग सकते हैं, इनके उत्पादन के लिए पानी की बेहद कम आवश्यकता होती है। 

साथ ही प्रकाश-असंवेदनशीलता और जलवायु परिवर्तन का भी इन अनाजों पर कोई ख़ास प्रभाव नहीं पड़ता, इसलिए इनका उत्पादन भी ज्यादा होता है और इन अनाजों का उत्पादन करने से प्रकृति को भी ज्यादा नुकसान नहीं होता। 

आज के युग में जब पानी लगातार काम होता जा रहा है और भूमिगत जल नीचे की ओर जा रहा है ऐसे में मोटे अनाजों का उत्पादन एक बेहतर विकल्प हो सकता है क्योंकि इनके उत्पादन में चावल और गेहूं जितना पानी इस्तेमाल नहीं होता। 

यह अनाज कम पानी में भी उगाये जा सकते हैं जो पर्यावरण के लिए बेहद अनुकूल हैं। मोटे अनाजों का उपयोग मानव अपने खाने के साथ-साथ जानवरों के खाने के लिए भी कर सकता है, इन अनाजों का उपयोग भोजन के साथ-साथ, पशुओं के लिए और पक्षियों के चारे के रूप में भी किया जाता है। ये अनाज हाई पौष्टिक मूल्यों वाले होते हैं जो कुपोषण से लड़ने में सहायक होते हैं।

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मोटे अनाजों का उत्पादन देश में कर्नाटक, राजस्थान, पुद्दुचेरी, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश इत्यादि राज्यों में ज्यादा किया जाता है, क्योंकि यहां की जलवायु मोटे अनाजों के उत्पादन के लिए अनुकूल है और इन राज्यों में मिलेट्स को आसानी से उगाया जा सकता है, 

इसके साथ ही इन राज्यों के लोग अब भी मोटे अनाजों के प्रति लगाव रखते हैं और अपनी दिनचर्या में इन अनाजों को स्थान देते हैं। इसके अलावा इन अनाजों का एक बहुत बड़ा उद्देश्य पशुओं के लिए चारे की आपूर्ति करना है। मोटे अनाजों के पेड़ों का उपयोग कई राज्यों में पशुओं के चारे के रूप में किया जाता है, 

इनके पेड़ों को मशीन से काटकर पशुओं को खिलाया जाता है, इस मामले में हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश और पश्चिमी उत्तर प्रदेश टॉप पर हैं, जहां मोटे अनाजों का इस उद्देश्य की आपूर्ति के लिए बहुतायत में उत्पादन किया जाता है। 

मोटे अनाजों के कई गुणों को देखते हुए सरकार लगतार इसके उत्पादन में वृद्धि करने का प्रयास कर रही है। जहां साल 2021 में 16.93 मिलियन हेक्टेयर में मोटे अनाजों की बुवाई की गई थी, 

वहीं इस साल देश में 17.63 मिलियन हेक्टेयर में मोटे अनाजों की बुवाई की गई है। अगर वर्तमान आंकड़ों की बात करें तो देश में हर साल 50 मिलियन टन से ज्यादा मिलेट्स का उत्पादन किया जाता है।

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इन मोटे अनाजों में मक्के और बाजरे का शेयर सबसे ज्यादा है। ज्यादा से ज्यादा किसान मोटे अनाजों की खेती की तरफ आकर्षित हों इसके लिए सरकार ने लगभग हर साल मोटे अनाजों के सरकारी समर्थन मूल्य में बढ़ोत्तरी की है। इन अनाजों को सरकार अब अच्छे खासे समर्थन मूल्य के साथ खरीदती है। 

जिससे किसानों को भी इस खेती में लाभ होता है। बीते कुछ सालों में इन अनाजों के प्रचलन का ग्राफ तेजी से गिरा है। आजादी के पहले देश में ज्यादातर लोग मोटे अनाजों का ही उपयोग करते थे, लेकिन अब लोगों के खाना खाने का तरीका बदल रहा है, 

जिसके कारण लोगों की जीवनशैली प्रभावित हो रही है और लोगों को मधुमेह, कैंसर, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियां तेजी से घेर रही हैं। इन बीमारियों की रोकथाम के लिए लोगों को अपनी थाली में मोटे अनाजों का प्रयोग अवश्य करना चाहिए, जिसके लिए सरकार लगातार प्रयासरत है। 

मोटे अनाजों के फायदों को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन्हें 'सुपरफूड' बताया है। अब पीएम मोदी दुनिया भर में इन अनाजों के प्रचार के लिए ब्रांड एंबेसडर बने हुए हैं। 

"अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष 2023 की समयावधि तक कृषि मंत्रालय ने पूर्व में शुरू किए गए विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन और प्राचीन तथा पौष्टिक अनाज को फिर से खाने के उपयोग में लाने पर जागरूकता फैलाने की पहल" से सम्बंधित सरकारी प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) रिलीज़ का दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, यहां क्लिक करें । 

पीएम नरेंद्र मोदी ने हाल ही में उज्बेकिस्तान के समरकंद में आयोजित हुए शंघाई सहयोग संगठन की बैठक को सम्बोधित करते हुए मोटे अनाजों को 'सुपरफूड' बताया था। 

उन्होंने अपने सम्बोधन में इन अनाजों से होने वाले फायदों के बारे में भी बताया था। पीएम मोदी ने शंघाई सहयोग संगठन के विभिन्न नेताओं के बीच अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिलेट्स फूड फेस्टिवल के आयोजन की वकालत की थी। 

उन्होंने बताया था की इन अनाजों के उत्पादन के लिए कितनी कम मेहनत और पानी की जरुरत होती है। इन चीजों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार लगातार मोटे अनाजों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए और प्रचारित करने के लिए प्रयासरत है।

यह राज्य कर रहा है मिलेट्स के क्षेत्रफल में दोगुनी बढ़ोत्तरी

यह राज्य कर रहा है मिलेट्स के क्षेत्रफल में दोगुनी बढ़ोत्तरी

साल 2023 में उत्तर प्रदेश सरकार मिलेट्स के क्षेत्रफल को बढ़ाएगी। प्रदेश सरकार इस रकबे को 11 लाख हेक्टेयर से बढ़ाकर 25 लाख तक करेगी। राज्य सरकार ने अपने स्तर से तैयारियों का शुभारंभ क्र दिया है। आने वाले साल 2023 को दुनिया मिलेट्स वर्ष के रूप में मनाएगी। मिलेट्स वर्ष मनाए जाने की पहल एवं इसकी शुरुआत में भारत सरकार की अहम भूमिका रही है। भारत में मिलेट्स का उत्पादन अन्य सभी देशों से अधिक होता है। देश का मोटा अनाज पूरी दुनिया में अपना एक विशेष स्थान रखता है। इसी वजह से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी मोटे अनाज को उत्सव के तौर पर मनाकर देश की प्रसिद्ध को दुनियाभर में फैलाना चाहते हैं। कुछ ही दिन पहले मोदी जी ने दिल्ली में आयोजित हुए एक कार्यक्रम में मोटे अनाज का बना हुआ खाना खाया था। भारत के विभिन्न राज्यों में मोटा अनाज का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता है। मिलेट्स इयर आने की वजह से उत्तर प्रदेश राज्य में मोटे अनाज के उत्पादन का क्षेत्रफल बाद गया है।

उत्तर प्रदेश राज्य कितने हैक्टेयर में करेगा मोटे अनाज का उत्पादन

खबरों के मुताबिक, प्रदेश के मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्र ने मिलेट्स इयर के संबंध में राज्य के कृषि विभाग के अधिकारीयों को बुलाकर इस विषय पर बैठक की है। इस बैठक में जिस मुख्य विषय पर चर्चा की गयी वह यह था, कि वर्तमान में 11 लाख हेक्टेयर में मोटे अनाज का उत्पादन हो रहा है। इसको साल 2023 में 25 लाख हेक्टेयर तक बढ़ाया जाए। हालाँकि लक्ष्य थोड़ा ज्यादा बड़ा है, विभाग के अधिकारी पहले से ही इस बात के लिए तैयारी में जुट जाएँ।


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उत्तर प्रदेश सरकार ने कितना लक्ष्य तय किया है

राज्य सरकार द्वारा अधीनस्थों को आगामी वर्ष में मोटे अनाज का क्षेत्रफल दोगुने से ज्यादा वृद्धि का आदेश दिया है। बतादें, कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मोटे अनाज से संबंधित पहल को बेहद ही गहनता पूर्वक लिया गया है। साथ ही, इस विषय के लिए उत्तर प्रदेश सरकार भी काफी गंभीरता दिखा रही है। उत्तर प्रदेश में सिंचित क्षेत्रफल का इलाका 86 फीसद हैं। बतादें, कि इस रकबे में दलहन, तिलहन, धान, गेहूं का उत्पादन किया जाता जाती है।

कहाँ से खरीदेगी सरकार बीज

कृषि विभाग के अधिकारियों को निर्देेश दिया गया है, कि कर्नाटक एवं आंध्र प्रदेश आदि राज्यों के अधिकारियों से संपर्क साधें। राज्य में बुआई हेतु मोटे अनाज के बीज की बेहतरीन व्यवस्था की जाए। सबसे पहली बार 18 जनपदों में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर बाजरा खरीदा जा रहा है।

उत्तर प्रदेश में कितना किया जायेगा अनाज का उत्पादन

उत्तर प्रदेश के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, देश में मोटे अनाज की मुख्य फसलें जिनका अच्छा उत्पादन भी होता है, वह ज्वार एवं बाजरा हैं। महाराष्ट्र राजस्थान, उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर बाजरा का उत्पादन किया जाता है। क्षेत्रफलानुसार बात की जाए तो उत्तर प्रदेश 9 .04 लाख हेक्टेयर, महाराष्ट्र में 6.88, राजस्थान में 43.48 लाख हेक्टेयर में बाजरे का उत्पादन किया जाता है। वहीं, उत्तर प्रदेश राज्य की पैदावार प्रति हेक्टेयर 2156 किलो ग्राम है। राजस्थान का उत्पादन प्रति हेक्टेयर 1049 किलोग्राम एवं महाराष्ट्र की पैदावार की बात करें तो 955 किलो ग्राम है।

ज्वार के उत्पादन का क्षेत्रफल कितना बढ़ा है

राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र एवं कर्नाटक में ज्वार का अच्छा खासा उत्पादन होता है। क्षेत्रफल के तौर पर कर्नाटक प्रति हेक्टेयर प्रति क्विंटल पैदावार के मामले में अव्वल स्थान है। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा ज्वार की पैदावार बढ़ाने के लिए काफी जोर दे रही है। उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्ष 2022 में 1.71 लाख हेक्टेयर उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। लेकिन वर्ष 2023 में इसको 1.71 लाख हैक्टेयर से बढ़ाकर 2.24 लाख हेक्टेयर तक पहुँचा दिया है। इसी प्रकार सावां व कोदो का रकबा भी पहले से दोगुना कर दिया गया है।